सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालु रूचि के साथ देख रहे हैं वेद्यशाला

Imageउज्जैन | यहाँ चल रहें सिंहस्थ में विभिन्न राज्यों के श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु संतो के पंडाल में तो जा ही रहे है उसके साथ उज्जैन के प्रसिद्ध स्थलों को भी देख रहें हैं। उज्जैन की वेद्यशाला काफी प्राचीन मानी जाती है, और इसकी गिनती महत्वपूर्ण रूप में होती हैं। देश की अत्यंत प्राचीन उज्जैन की शासकीय जीवाजी वेद्यशाला (यन्त्र महल) खगोलीय जिज्ञासाओं के समाधान के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रही है। इस वेद्यशाला के द्वारा जहां  बड़े व्यक्तियों को खगोलीय यंत्रो की जानकारी दी जा रही है, वही छोटे बच्चो को भी तारा मंडल और अन्य यंत्रो की जानकारी से अवगत कराया जा रहा है। सिंहस्थ पर्व 2016 के दौरान 22 अप्रैल से अभी तक 455 व्यक्तियों को तारा मंडल और 210 व्यक्तियों को टेलीस्कोप के द्वारा विभिन्न ग्रहों का अवलोकन कराया गया है। साथ ही 2 हजार 16 पर्यटकों कों और 130 बच्चो ने सम्राट यन्त्र, नाडी वलय यन्त्र, भित्ति यन्त्र, दिगंश यन्त्र और शंकू यन्त्र का अवलोकन किया है। उल्लेखनीय है कि इस वेद्यशाला का वर्ष 1719 मे जयपुर के महाराज सवाई राजा जयसिंह ने निर्माण कराया था तथा इसके बाद समय-समय पर विभिन्न जीर्णोद्धार के कार्य कराये गए हैं।शासकीय जीवाजी वेद्यशाला के अधीक्षक डॉ. राजेन्द्र प्रकाश गुप्त ने बताया कि वेद्यशाला प्रतिदिन प्रातः 6 से रात्रि 10 बजे तक खुली रहती है तथा इसमें प्रवेश और तारा मंडल एवं टेलीस्कोप के अवलोकन के लिए शुल्क निर्धारित है। वेद्यशाला में दर्शको को सम्राट यन्त्र, नाडी वलय यन्त्र, भित्ति यन्त्र, दिगंश यन्त्र और शंकू यन्त्र का अवलोकन कराया जाता है। सम्राट यन्त्र के बीच की सीढ़ी की दीवार की ऊपरी सतह पृथ्वी की धुरी के समानांतर होने के कारण दीवारों के ऊपरी धरातल की सीध में धु्रव तारा दिखाई देता हैं। उसके पूर्व और पश्चिम के और विशुवत वृत धरातल में समय बतलाने के लिए एक चोथाई गोल भाग बना हुआ हैं जिस पर घंटे, मिनट और मिनट का तीसरा भाग खुदा हुआ हैं। जब आकाश मे सूर्य चमकता हैं तब दीवार के किनारे की छाया पूर्व या पश्चिम की तरफ का समय बतलाने वाले किसी निशान पर दिखाई देती हैं। इस निशान पर घंटा, मिनट आदि की गिनती से उज्जैन का स्थानीय समय ज्ञात होता है तथा यन्त्र के पूर्व और पश्चिम बाजू मे लगी सारणी के अनुसार मिनट को इस स्पष्ट समय से जोड़ने पर भारतीय मानक समय ज्ञात होता हैं। आकाश में गृह नक्षत्र विशुवत वृत से उत्तर और दक्षिण में कितनी दूरी पर हैं, यह जानने के लिए भी इस यन्त्र का उपयोग किया जाता हैं। नाडी वलय यन्त्र कोई भी गृह अथवा नक्षत्र उत्तरीय और दक्षिणी गोलार्ध के किस आधे गोल में स्थित हैं, यह जानने के लिए उपयोग किया जाता हैं। भित्ति यन्त्र से गृह नक्षत्रो के नतांश ज्ञात किये जाते हैं तथा दिगंश यन्त्र से गृह नक्षत्रो के उन्नतांश और दिगंश ज्ञात किये जाते हैं। शंकु यन्त्र के माध्यम से शंकु की छाया से भी उन्नतांश ज्ञात किये जाते है तथा जब दिन और रात बराबर होते हैं तब मध्यान्हकालीन शंकु की छाया से अक्षांश ज्ञात होते हैं। शंकु यन्त्र जिस क्षितिज वृत के धरातल में निर्मित हैं उसके मध्य मे लगे शंकु की छाया से सात रेखाएं खीची गई हैं जो १२ राशियों को प्रदर्शित करती हैं। इन रेखाओ में से 22 दिसम्बर वर्ष का सबसे छोटा दिन, 21 मार्च और 23 सितम्बर दिन-रात बराबर तथा 22 जून वर्ष का सबसे बडा़ दिन बतलाते हैं।इसी प्रकार तारा मंडल मे क्रांति वृत्त, दिशा पहचान, ध्रुव तारा, बारह राशियों, काल पुरुष, सप्त ऋषि आदि की जानकारी दी जाती है। वेद्यशाला में 2 और 3 इंच व्यास के टेलीस्कोप, 8 इंच व्यास का इलेक्ट्रॉनिक टेलीस्कोप और सोलर फिल्टर सहित 2 इंच व्यास का टेलीस्कोप उपलब्ध हैं। टेलीस्कोप के द्वारा रात्रि के समय आकाश अवलोकन के साथ ही ग्रहण आदि की विशेष घटनाओं का अवलोकन कराया जाता है। सोलर फिल्टर वाले टेलीस्कोप से दिन के समय सूर्य और उसक धब्बो को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं। वर्तमान मे टेलीस्कोप के माध्यम से प्रतिदिन शाम 7 से रात्रि 9 बजे तक बृहस्पति ग्रह का अवलोकन कराया जा रहा है। उज्जैन पहुंचने वाले परिवार अपने बच्चों के साथ वेद्यशाला पहुंच गए हैं।

No comments:

Post a Comment