ब्रेन हेमरेज का आसान इलाज मेदांता में ...।

नई दिल्ली ।बीमा कंपनी से जुड़े 43 वर्षीय राहुल शर्मा (बदला हुआ नाम) काम करते-करते एक दिन अचानक बेहोश हो गए। अफरा-तफरी में उन्हें निकट के  एक अस्पताल में ले जाया गया जहां पता चला कि वे ब्रेन हैमरेज (मस्तिष्क  आघात) का शिकार हो गए हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्हें दिल्ली के पास गुड़गांव स्थित मेदांता मेडिसिटी ले जाया गया। वहां पहुंचने पर तत्काल ही मस्तिष्क की एंजियोप्लास्टी की गई। जांच से पता चला कि उनके  दिमाग की एन्यूरिम नाम की एक सूजी हुई नस से रक्तस्राव हुआ है जिसके कारण  वह बेहोश हो गए थे।जांच करने पर चिकित्सकों ने पाया कि मरीज के फिर से मस्तिष्क आघात का शिकार हो जाने का भी भारी खतरा है और उसकी जान बचाने के लिए उस सूजी हुई रक्तनलिका की तत्काल मरम्मत जरूरी है, जिससे रक्त स्राव हुआ था। चिकित्सकों ने तत्काल ही उनक ी सूजी हुई क्षतिग्रस्त नलिका में एक बेहद सूक्ष्म टयूब को पहुंचाया तथा जहां से रक्त स्राव हुआ था उस स्थान को प्लैटिनम के एक छल्ले से बंद कर दिया। उस सूक्ष्म टयूब को माइक्रोकैथेटर कहते हैं जिसे पैरों की रक्त नलिका के माध्यम से क्षतिग्रस्त रक्त नलिका तक पहुंचाया गया था तथा इस संपूर्ण प्रक्रिया को एंडोवैस्कुलर माध्यम से संपन्न कर क्षतिग्रस्त नलिका की मरम्मत की गई। इस सर्जरी के बाद राहुल शर्मा अब बिल्कुल स्वस्थ हैं और अपना दैनिक जीवन जी रहे हैं। इस सर्जरी को अंजाम देने वाले मेदांता न्यूरोवेस्कुलर इंटरवेंसन सेंटर के इंटरवेंसनल न्यूरो रेडियोलॉली सर्जरी विभाग के प्रमुख डा। विपुल गुप्ता का कहना है कि एक समय मौत का दूत माने जाने वाले ब्रेन हैमरेज का उपचार आज नवीनतम तकनीकों की बदौलत अत्यंत कारगर, सुरक्षित एवं काफी हद तक कष्टरहित हो गया है। ब्रेन हैमरेज के सर्जरी का परिणाम उतना ही बेहतर होता है जितनी जल्दी ब्रेन हैमरेज का मरीज अस्पताल पहुंच जाए। इसलिए मरीज को ब्रेन हैमरेज होने का तनिक भी संदेह होने पर उसे चिकित्सक के पास ले जाने में विलंब नहीं करना चाहिए। पूर्व में देश के सबसे बड़े अस्पताल नई दिल्ली के अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान से जुड़े रहे डा। विपुल गुप्ता के अनुसार हमारे देश में हेल्थ केयर की जो पध्दति है, वह ब्रेन हैमरेज के मामले को जटिल और चुनौतीपूर्ण बना देती है। इसके लक्षणों को पहचानने में तथा इलाज में देरी इसको और भी खतरनाक बना देती है। डा। विपुल गुप्ता कहते हैं कि आज अमेरिका में ब्रेन हैमरेजही मौत का तीसरा कारण है। यहकिसी भी इंसान के जीवन की आजादी छीन सकता है। वास्तव में, ब्रेन हैमरेज तब होता है जब दिमाग यानी मस्तिष्क का रक्त प्रवाह अवरूध्द हो जाता है। दिमाग तक कम या अवरूध्द रक्त प्रवाह होने से दिमाग की नसें नष्ट हो जाती हैं जिससे मस्तिष्क तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता है। डा। विपुल गुप्ता के अनुसार ब्रेन हैमरेज के बारे में जानने के लिए दिमाग के बारे में बारीकी से जानना आवश्यक है। रक्त नलिका  में सूजन को एन्यूरिज्म के नाम से जाना जाता है। यह सूजी हुई नलिका फट सकती है और उससे मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है। एक शोध अघ्ययन के अनुसार आबादी के 3 से 5 प्रतिशत तक के हिस्से के मस्तिष्क में ऐसी सूजी हुई नलिका मौजूद रहा करती है और 20 मस्तिष्क आघातों में से एक इसी सूजी हुई नस के  फटने की वजह से होता है। आम तौर पर यह आघात 40-50 की उम्र के  बीच हुआ करता है, जिसे जीवन में उम्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। दरअसल दूसरी तरह के आघातों से यह अलग है क्योंकि यह अपेक्षाकृत कम उम्र में हमला बोलता है और सेरेब्रल इनफारक्सन या इंट्रासेरेब्रल आघात के समान जानलेवा साबित हो सकता है। लगभग 30 प्रतिशत मरीज तो शुरूआती रक्त स्राव को भी सहन नहीं कर पाते जब कि प्रारंभिक हमला झेल जाने वाले मरीजों में से भी 50 प्रतिशत से अधिक एक महीने से अधिक जिंदा नहीं रह पाते क्योंकि एन्यूरिम कभी भी फट सकता है। डा. गुप्ता के अनुसार एन्यूरिज्म के इलाज करने की पारंपरिक विधि ओपन सर्जरी 'क्लिपिंग' रही है। लेकिन इस विधि में मस्तिष्क पेरेनसाइमा के चोटग्रस्त हो जाने का बहुत अधिक खतरा रहता है। लेकिन एंडोवेस्कुलर कामाध्यम अपनाए जाने पर इस तरह का कोई खतरा नहीं रहता है। पैरों की धमनियों के रास्ते से एक सूक्ष्म टयूब यानी माइक्रोकेथेटर को वहां ले जाया जाता है और उससे क्षतिग्रस्त हिस्से को बंद कर दिया जाता है। यह 'क्वाएलिंग' के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया को अपनाए जाने का एक बड़ा फायदा यह है कि इससे मस्तिष्क को कम से कम नुकसान पहुंचता है और इसके परिणाम भी अपेक्षाकृत बेहतर आ रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि 'क्वायलिंग' की प्रक्रिया से गुजरने वाले मरीज 'क्लिपिंग' के मुकाबले अधिक तेजी से सवास्थ्य लाभ करते हैं। मेदांता मेडिसिटी ने एक विशेष ब्रेन एन्यूरिज्म कार्यक्रम विकसित किया है और ब्रेन एन्यूरिज्म के 90 प्रतिशत से अधिक मामलों का इलाज एंडोवेस्कु लर विधि से किया जा रहा है और उनके परिणाम भी बेहतर आए हैं। मस्तिष्क आघात उन रोगों में से है जो मस्तिष्क को सही तरह से रक्त न पहुंच पाने के कारण होता है। अधिकतर आघात, मस्तिष्क को एकाएक रक्त की आपूर्ति बाधित हो जाने के कारण होते हैं जिनके परिणामस्वरूप पैरालिसिस की समस्या पैदा हो जाया करती है। अन्य आघात मस्तिष्क से होने वाले रक्त स्राव के कारण होते हैं। इन आघातों से जिनकी जान बच जाती है वे भी ऐसी विकलांगता का शिकार हो जाया करते हैं और अपनी सामान्य दिनचर्या भी सही तरीके से नहीं निभा पाते। मस्तिष्क आघात मृत्यु और विकलांगता का तीसरा सबसे सामान्य कारण होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा 1990 में कराए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत में होने वाली 9।4 मिलियन मौतों में से 6,19,000 की मृत्यु मस्तिष्क आघात के कारण हुई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि भारत में 2000 में आघात से मरने वालों की जो संख्या 598000 थी वह 2020 तक 945000 तक पहुंच जाएगी। भारत में बढ़ती हुई आबादी, बदलती हुई जीवनशैली मसलन शहरीकरण, धूम्रपान, नमक या शराब का सेवन, तनाव और शारीरिक गतिविधियों की कमी की वजह से पक्षाघात का खतरा लगातार ही बढ़ता चला जा रहा है। ऐसे में मेदांता में उपलब्ध इलाज के नवीनतम तकनीकों का महत्व स्वाभाविक रूप से बहुत बढ़ जाता है। मेदांता न्यूरोवेस्कुलर इंटरवेंसन सेंटर वह एकमात्र केंद्र है जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखने वाले और प्रशिक्षित न्यूरोइंटरवेंसनिस्ट दिन-रात अपनी सेवा दे रहे हैं। न्यूरोवेस्कुलर इंटरवेंसनल सेंटर के प्रमुख डॉ। विपुल गुप्ता क ा कहना है कि उनके केंद्र में बाईप्लेन विजुअलाइजेशन, 3डी इमेजिंग, इनबिल्ट सीटी और फ्लो इमेजिंग सहित वे सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं जो कि किसी भी विश्वस्तरीय अस्पताल की खासियत होती हैं। इन सुविधाओं की वजह से यह उत्तर भारत में निजी क्षेत्र का सबसे आधुनिक इंटरवेंसनल लैबोरेट्री है। 

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