पानीपत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज में लड़कियों की गिरती संख्या, भ्रूण हत्या पर चिंता जताते हुए कहा कि बेटा-बेटी एक समान हमारा मंत्र होना चाहिए। भ्रूण हत्या समाज के प्रति द्रोह है। उन्होंने कहा कि पानीपत की धरती से एक बड़ी जिम्मेदारी शुरू की जा रही है। यह समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है। हर किसी की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक एक समाज के रूप में हम इस समस्या के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, जागरूक नहीं होंगे। हम अपना ही नहीं, आने वाली सदियों तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक भयंकर संकट को निमंत्रण दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं मेनका गांधी व उनके विभाग को धन्यवाद दूंगा जो उन्होंने इस पर सहमति जताई। हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी धन्यवाद करूंगा कि उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया। लेकिन यह योजना सिर्फ हरियाणा नहीं पूरे देश के लिए है।उन्होंने कहा कि सांसारिक चक्र के लिए जरूरी है कि एक हजार लड़के पैदा हों तो एक हजार लड़कियां भी पैदा हों। हरियाणा में ही महेंद्रगढ़ समेत कई जिलों में लड़कियों की संख्या बहुत कम हैं। उन्होंने कहा, माताओं से पूछना चाहता हूं कि बेटी नहीं पैदा होगी तो बहू कहां से लाओगी। हम जो चाहते हैं समाज भी तो वही चाहता है। हम चाहते हैं कि बहू पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटियों को पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। आखिर यह दोहरापन कब तक चलेगा। अगर हम बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो शिक्षित बहू की उम्मीद बेमानी है। जिस धरती पर मानवता का संदेश दिया गया हो वहां बेटियों की हत्या दुख देती है। यह अल्ताफ हुसैन हाली की धरती है। हाली ने कहा था, मांओ, बहनों, बेटियां दुनिया की जन्नत तुमसे है, मुर्दों की बस्ती हो तुम, कौमों की इज्जत तुमसे हो।शास्त्रों में भी बेटियों की प्रशंसा की गई है। उन्हें आशीर्वाद दिया गया है। उसी धरती पर बेटियों को बेमौत मार दिया जाए। इसके मूल में हमारे मन की बीमारी है। जिसमें हम बेटियों को परायी मानते हैं। मां भी बेटों को दो चम्मच घी देती है तो बेटी को एक चम्मच। यह समस्या पूरे देश की है। आखिर कब तक हम बेटियों को परायी मानते रहेंगे। उन्होंने कहा कि गर्भ में पाल रही बहन कभी नहीं चाहती की उसकी बेटी को मार दिया जाए, लेकिन परिवार का दबाव उसे इसके लिए मजबूर कर देता है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी तरह से खुद को इक्कीसवीं सदी का नागरिक कहने योग्य नहीं हैं। हम अठारहवीं सदी में हैं, जब बेटी को पैदा होते ही दूध में डाल दिया जाता था। हम तो उनसे भी कई गुजरे हैं। उस समय कम से कम बेटी जन्म तो लेती थी, लेकिन अब तो बेटी को मां का चेहरा भी नहीं देखने देते, दो पल सांस नहीं लेने देते। दुनिया का अहसास नहीं होने देते। उसे पेट में ही मार देते हैं। इससे बड़ा पाप क्या हो सकता है?बेटा-बेटी एक समान - बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओः-मोदी
पानीपत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज में लड़कियों की गिरती संख्या, भ्रूण हत्या पर चिंता जताते हुए कहा कि बेटा-बेटी एक समान हमारा मंत्र होना चाहिए। भ्रूण हत्या समाज के प्रति द्रोह है। उन्होंने कहा कि पानीपत की धरती से एक बड़ी जिम्मेदारी शुरू की जा रही है। यह समय आरोप-प्रत्यारोप का नहीं है। हर किसी की सामूहिक जिम्मेदारी है। जब तक एक समाज के रूप में हम इस समस्या के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे, जागरूक नहीं होंगे। हम अपना ही नहीं, आने वाली सदियों तक पीढ़ी दर पीढ़ी एक भयंकर संकट को निमंत्रण दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं मेनका गांधी व उनके विभाग को धन्यवाद दूंगा जो उन्होंने इस पर सहमति जताई। हरियाणा के मुख्यमंत्री का भी धन्यवाद करूंगा कि उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया। लेकिन यह योजना सिर्फ हरियाणा नहीं पूरे देश के लिए है।उन्होंने कहा कि सांसारिक चक्र के लिए जरूरी है कि एक हजार लड़के पैदा हों तो एक हजार लड़कियां भी पैदा हों। हरियाणा में ही महेंद्रगढ़ समेत कई जिलों में लड़कियों की संख्या बहुत कम हैं। उन्होंने कहा, माताओं से पूछना चाहता हूं कि बेटी नहीं पैदा होगी तो बहू कहां से लाओगी। हम जो चाहते हैं समाज भी तो वही चाहता है। हम चाहते हैं कि बहू पढ़ी-लिखी मिले, लेकिन बेटियों को पढ़ाने के लिए तैयार नहीं हैं। आखिर यह दोहरापन कब तक चलेगा। अगर हम बेटी को पढ़ा नहीं सकते तो शिक्षित बहू की उम्मीद बेमानी है। जिस धरती पर मानवता का संदेश दिया गया हो वहां बेटियों की हत्या दुख देती है। यह अल्ताफ हुसैन हाली की धरती है। हाली ने कहा था, मांओ, बहनों, बेटियां दुनिया की जन्नत तुमसे है, मुर्दों की बस्ती हो तुम, कौमों की इज्जत तुमसे हो।शास्त्रों में भी बेटियों की प्रशंसा की गई है। उन्हें आशीर्वाद दिया गया है। उसी धरती पर बेटियों को बेमौत मार दिया जाए। इसके मूल में हमारे मन की बीमारी है। जिसमें हम बेटियों को परायी मानते हैं। मां भी बेटों को दो चम्मच घी देती है तो बेटी को एक चम्मच। यह समस्या पूरे देश की है। आखिर कब तक हम बेटियों को परायी मानते रहेंगे। उन्होंने कहा कि गर्भ में पाल रही बहन कभी नहीं चाहती की उसकी बेटी को मार दिया जाए, लेकिन परिवार का दबाव उसे इसके लिए मजबूर कर देता है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी तरह से खुद को इक्कीसवीं सदी का नागरिक कहने योग्य नहीं हैं। हम अठारहवीं सदी में हैं, जब बेटी को पैदा होते ही दूध में डाल दिया जाता था। हम तो उनसे भी कई गुजरे हैं। उस समय कम से कम बेटी जन्म तो लेती थी, लेकिन अब तो बेटी को मां का चेहरा भी नहीं देखने देते, दो पल सांस नहीं लेने देते। दुनिया का अहसास नहीं होने देते। उसे पेट में ही मार देते हैं। इससे बड़ा पाप क्या हो सकता है?
Labels:
देश
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Panipat, Haryana, India
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