नई दिल्ली। भारत के कूटनीतिक दबाव ने फिर रंग दिखाया है। मुंबई में आतंकी हमले केप्रमुख साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवीकी पाकिस्तान में रिहाई और गिरफ्तारी पड़ोसी मुल्क के अजब कानूनी दावपेंचों के रूप में सामने आई है। मंगलवार को लखवी को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि इस बार गिरफ्तारी छह साल पुराने एक मामले में हुई।भारत के कड़े एतराज के बाद सोमवार को दिल्ली में पाक उच्चायुक्त को तलब करने और पाक सरकार को सख्त संकेत देने के बाद 2008 के मुंबई हमले का मुख्य आरोपी फिर सलाखों के पीछे ही रहेगा। छह साल पुराने अपहरण के मामले में रिहाई से ठीक पहले लखवी को रावलपिंडी की अदियाला जेल से बाहर निकाला गया और फिर से हिरासत में लिया गया।एक दिन पहले सोमवार को ही इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने लखवी को हिरासत में रखने की अधिसूचना रद कर दी थी जिससे उसकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया था। गत 18 दिसंबर को आतंकवाद निरोधक अदालत ने लखवी की जमानत याचिका को स्वीकार किया था। इसके बाद भारत की ओर से आई तीखी प्रतिक्रिया के कारण लखवी को मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर के तहत गिरफ्तार किया था। लखवी ने जिला प्रशासन के इस आदेश को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।भारत के विरोध पर लखवी फिर गिरफ्तार
नई दिल्ली। भारत के कूटनीतिक दबाव ने फिर रंग दिखाया है। मुंबई में आतंकी हमले केप्रमुख साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवीकी पाकिस्तान में रिहाई और गिरफ्तारी पड़ोसी मुल्क के अजब कानूनी दावपेंचों के रूप में सामने आई है। मंगलवार को लखवी को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि इस बार गिरफ्तारी छह साल पुराने एक मामले में हुई।भारत के कड़े एतराज के बाद सोमवार को दिल्ली में पाक उच्चायुक्त को तलब करने और पाक सरकार को सख्त संकेत देने के बाद 2008 के मुंबई हमले का मुख्य आरोपी फिर सलाखों के पीछे ही रहेगा। छह साल पुराने अपहरण के मामले में रिहाई से ठीक पहले लखवी को रावलपिंडी की अदियाला जेल से बाहर निकाला गया और फिर से हिरासत में लिया गया।एक दिन पहले सोमवार को ही इस्लामाबाद उच्च न्यायालय ने लखवी को हिरासत में रखने की अधिसूचना रद कर दी थी जिससे उसकी रिहाई का रास्ता साफ हो गया था। गत 18 दिसंबर को आतंकवाद निरोधक अदालत ने लखवी की जमानत याचिका को स्वीकार किया था। इसके बाद भारत की ओर से आई तीखी प्रतिक्रिया के कारण लखवी को मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर के तहत गिरफ्तार किया था। लखवी ने जिला प्रशासन के इस आदेश को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
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