पाकिस्तान -जान बचाने को दर दर भटकते लाखों परिवार



पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर खैबर कबायली इलाके के मोहम्मद सईद और मुमताज गुल भी वहां से बेघर होने वाली लोगों की फेहरिस्त में शामिल हो गए हैं और ये सूची लगातार बढ़ती जा ही है.इन दोनों लोगों की कहानी भी दर्दनाक और दिल को छू लेने वाली है.ये दोनों खैबर इलाकों के उन तीन हजार लोगों में शामिल हैं जो हालिया लड़ाई से जान बचाने की खातिर अपना घर-बार छोड़ कर वहां से भागे हैं.अब वे सरकार से खाना और आसरा पाने के लिए जूझ रहे हैं. अभी ये लोग पेशावर से 30 किलोमीटर दूर पूर्व में जलोजाई शिविर में मौजूद हैं.36 वर्षीय मोहम्मद सईद बताते हैं, “अधिकारियों का कहना है कि उनके पास हम लोगों के बेघर होने की सूचना नहीं है और इसलिए हमें मदद नही मिल सकती है.”वो आगे कहते हैं, “उनका कहना है कि पहले खैबर के कबायली प्रशासन में हमारा नाम आतंरिक रूप से विस्थापित होने वाले लोगों की सूची में शामिल किया जाएगा और उसके बाद जलोजी शिविर के अधिकारी हमारा रजिस्ट्रेशन करेंगे.”दोहरी मारलाल फीताशाही में फंसे सईद फिलहाल परिवार के साथ एक किराए के मकान में रह रहे हैं जिसके लिए उन्हें हर महीने लगभग दो हजार पाकिस्तानी रुपए चुकाने पड़ते हैं.लेकिन सईद और उनके परिवार को दोहरी मार झेलनी पड़ी है. पहले उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए भागना पड़ा और अब मदद के लिए सरकारी विभागों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.खैबर के तिराह क्षेत्र में तख्ताकाई घाटी में सईद का घर था. वहां फरवरी के पहले सप्ताह में न सिर्फ भारी बर्फबारी हुई बल्कि इलाके पर नियंत्रण के लिए विभिन्न गुटों के बीच भीषण लड़ाई भी शुरू हो गई.ये क्षेत्र रणनीतिक रूप से खासा अहम माना जाता है. बेहद ऊंचाई वाले इस इलाके से उत्तर में अफगानिस्तान से लगने वाली सीमा पर पाकिस्तान सेना की आपूर्ति और दक्षिण में तालिबान के दबदबे वाले औरकजई इलाके पर बखूबी नजर रखी जा सकती है.बेबस स्थानीय कबीलेस्थानीय कबीलों ने चार साल तक अपने इलाकों में चरमपंथियों को पांव नहीं जमाने दिए थे. लेकिन जब तहरीके तालिबान पाकिस्तान के लड़ाके अपने प्रतिद्वंद्वी लश्कर-ए-इस्लाम गुट से मिल गए तो स्थानीय कबायली लोग उनके सामने बेबस हो गए.सईद कहते हैं, “घाटी में दिन भर बम गिरते रहे और शाम तक खबरें आने लगीं कि बाहरी चौकियां ध्वस्त कर दी गई हैं और ज्यादातर स्थानीय लड़ाके मारे जा चुके हैं.”ऐसे में तालिबान से गुस्से से बचने के लिए बहुत से लोग अपने घरों को छोड़ कर भागने लगे. उन्होंने अपने जानवर और सर्दियों के लिए जमा खाने के भंडार भी पीछे ही छोड़ दिएसईद कहते हैं, “मेरे परिवार में 13 सदस्य हैं जिनमें तीन महिलाएं और आठ बच्चे शामिल हैं. हम चार दिन तक बर्फीली हवाओं में पैदल चलते रहे और तब जाकर पेशावर पहुंचे.”एम इलियास ख़ान

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