
उज्जैन | समापन अवसर पर मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस श्री कृष्णा, अध्यक्षता लक्ष्मीकान्त शर्मा ने की, विशेष अतिथि खाद्य मंत्री श्री पारस जैन, श्री एम.राज कौशी, सोमनाथ विवि के कुलपति श्री वेंकटाकुंभ शास्त्री, पतंजली विश्वविद्यालय के सभापति डॉ.उपाध्याय। समापन अवसर पर संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकान्त शर्मा ने कहा कि हमारे लिये यह गौरव की बात है कि संस्कृत साहित्योत्सव का शुभारंभ का अवसर मध्य प्रदेश को प्राप्त हुआ है, विगत दो वर्ष पूर्व बैंगलोर में पुस्तक मेले का आयोजन किया गया था, उसी से प्रेरणा लेकर यह आयोजन किया गया है। इसके सम्बन्ध में तैयारियों के लिये हमें समय कम मिला, आगे यदि अवसर प्राप्त होता है तो इस आयोजन को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर करेंगे, इस आयोजन में तीन हजार से अधिक विद्वानों ने भाग लिया, इसमें संस्कृत पाठक, शिक्षक, शिष्यों का हमें सहयोग मिला है, इसलिये हमारा उत्साह कई गुना बढ गया है, यह आयोजन हमने सबके सहयोग व समन्य से सफल रूप से आयोजित किया है, मंत्री ने कहा कि संस्कृत देवभाषा के साथ वेदभाषा भी है, प्राचीन इतिहास एवं वैदिक काल में जब विदेशी जंगलों में पेडों पर अपना जीवन यापन करते थे तब हमारा विज्ञान परम उत्कर्ष पर था, अब संस्कृत को हम उसका पुराना वैभव लौटाने के लिये निरन्तर प्रयास कर रहे हैं उसी कडीमें यह एक छोटा सा आयोजन है, संस्कृत का प्रचार प्रसार व लोगों का सहयोग अन्तर्रार्ष्टीय भाषा बनेगी और आम आदमी की भाषा बनेगी, पर यह एक शोचनीय विषय है कि संस्कृत को वर्तमान में पंडितों की भाषा कहा जाता है, मंत्रोच्चार के समय उसका उपयोग सही नहीं कर पाते रासंस्कृत संस्थान के माध्यम से हमेशा प्रयास करेंग्रे किहर जिले में कुछ जगहों को चिन्हित कर संस्कृत को वार्तालाप की भाषा बनाई जाये, संस्कृत संस्कार की भाषा है, उसको उपयोग करने वाला व्यक्ति समाज में संस्कारी रहता है, जब संस्कृत अपने आमआदमी के लिये सरल हो जायेगी तो भारत को विश्व गुरू बनने से कोई नहीं रोक सकता, और हम उसी ओर अग्रसर हैं। खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री श्री पारस जैन ने सस्कृत में अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि विक्रमादित्य की सभा में नवरत्न थे,साहित्योत्सव की सभा में सहó रत्न उपस्थित हैं, जिनका सान्निध्य एवं दर्शन पाकर उज्जयिनी धन्य हुई है। संस्कृत भाषा में दुनिया का सम्पूर्ण ज्ञान छिपा है, यह सुना था, उसका प्रत्यक्ष सात्क्षात्कार संस्कृत विज्ञान प्रदर्शनी को देखकर हुआ है। मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति श्री बी.एन.श्री कृष्ण ने संस्कृत में भाषण देते हुए कहा कि जिस प्रकार एक महिला अपने गले में विद्यमान कंठहार को भूलकर उसे आसपास ढूंढती है, उसी तरह हम अपने ज्ञान की मूल सम्पत्ति को भूलकर दुनिया की ओर देख रहे हैं, जबकि सम्पूर्ण् ज्ञान विज्ञान हमारी अपनी संस्कृत भाषा के वाड्मय में निहित है। उन्होंने कहा कि जिस भाषा में व्याकरण नहीं होता, वह भाषा नष्ट हो जाती है। भाषा की कोई जाति नहीं होती, संस्कृत भाषा केवल एक वर्ग विशेष की भाषा नहीं अपितु सभी की भाषा है विशिष्ट अतिथि राज्य सभा सांसद एवं पूर्व राज्यपाल डॉ.रामाजोयीस ने कहा कि 1993 में सर्वाेच्च न्यायालय में शिक्षा सभी का मूलभूत अधिकार है। इस विषय पर हुई बहस में मैं शामिल था। तब मैंने उज्जैन के राजा भतृहरी द्वारा उधृत श्लोक ‘विद्याविहिन पशुः’ यानि विद्या से ही व्यक्ति मानव बनता है, इसे उधृत किया था। आज भतृहरी का श्लोक शिक्षा सभी का मूलभूत अधिकार है, इसका आधार बना है। बैंगलूर की अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगोष्ठी में विषय था कि मानव को सुख का अधिकार है या नहीं। तब सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया के भारतीय भाव के उल्लेख से विश्व मानव अधिकार आयोग ने सुख को मानव का मूलभूत अधिकार माना। प्रस्तावना रखते हुए महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के चेयरमेन श्री मनमोहन उपाध्याय ने कहा कि मध्य प्रदेश में साहित्योत्सव का सफल आयोजन प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री एवं संस्कृति मंत्री के प्रतिबद्ध प्रयासों से हो सका है। उन्होंने बताया कि इस संस्कृत महामेले में 1428 शिक्षकों, 400 स्नातकोत्तर विद्यार्थियों, विश्व में प्रथम बार एक साथ एक जगह पर 39 संस्कृत प्रकाशकों द्वारा 153 पुस्तकों का विमोचन किया गया, यह एक विश्व रिकार्ड है। मेले में संस्कृत आधारित, व्याकरण आधारित 19 सीडियों का विमोचनकिय गया , मेले में 53 संस्कृत पुस्तक प्रकाशकों द्वारा भाग लिया गया, संस्कृत मेले में दोपहर तक 82 लाख रूपये की पुस्तकें विक्रय की गईं, 10 विवि ने भाग लिया, 5 दूसरे अन्य विवि ने इसी के साथ आईएएस आईपीएस, आआईटीधारी संस्कृत विद्वानों ने भाग लेकर अपना योगदान दिया। समापन अवसर पर शाम को गुजरात के दल द्वारा गरबा प्रस्तुत किया गया तथा शंकराचार्य फिल्म प्रदर्शन किया गया। संस्कृत अकादमी के उपनिदेशक श्री शशिरंजन अकेला ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन श्री दिवाकर शर्मा ने किया और अन्त में आभार प्रो.मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी ने प्रकट किया।
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