नई दिल्ली | अमेरिका में इस साल 8 नवंबर को राष्ट्रपति पद के लिए वोटिंग होनी है. इस बार रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन के बीच मुकाबला है. चुनाव अभियान के दौरान दोनों उम्मीदवारों के बीच हुई बहस और आरोप-प्रत्यारोप ने दुनिया भर का ध्यान इस चुनाव की ओर खींचा है.
दुनिया में सबसे ताकतवर माने जाने वाले इस मुल्क के सबसे ताकतवर व्यक्ति का चुनाव काफी लंबा, पेचीदा और घुमावदार होता है. ऐसे में हम यहां आपको बता रहे हैं अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव किस तरह होता है...इलेक्टोरल कॉलेज के जरिये चुने जाते हैं राष्ट्रपति
अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद-2 में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रिया का जिक्र है. इसमें 'इलेक्टोरल कॉलेज' के जरिये अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की व्यवस्था है. हालांकि अमेरिकी संविधान निर्माताओं का एक वर्ग चाहता था कि राष्ट्रपति चुनने का अधिकार संसद को मिले, जबकि दूसरा धड़ा सीधी वोटिंग के जरिये चुनाव के हक में था. इन दोनों धड़ों के बीच हुए समझौते के बाद तब यह तरीका वजूद में आया.
जनवरी से नवंबर की शुरुआत तक चलती है प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हर चार साल में होते हैं और चुनाव प्रक्रिया जनवरी में शुरू होकर नवंबर के शुरुआती हफ्ते में मतदान तक चलती है. नवंबर महीने के पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले मंगलवार को वोटिंग होती है और 20 जनवरी को इनॉग्रेशन डे पर नवनिर्वाचित राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करते हैं और उनका चार वर्षों का कार्यकाल शुरू हो जाता है.
डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन के बीच ही मुकाबला
यहां व्यवस्था भले ही बहुदलीय है, लेकिन आम तौर पर जनता दो ही दलों - डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों के बीच ही चुनाव करती है. इन दोनों दलों के अलावा लिब्रेटेरियन, ग्रीन और कांस्टीट्यूशन पार्टी के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार भी इस चुनाव में किस्मत आजमाते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम योग्यता 35 वर्ष की उम्र है. इसके अलावा पिछले 14 सालों से अमेरिका में रह रहा हर नागरिक राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी का दावा कर सकता है.
'प्राइमरी' चुनाव से शुरू होती है चुनावी प्रक्रिया
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया औपचारिक रूप से 'प्राइमरी' चुनाव के साथ जनवरी में शुरू होती है, जो कि जून तक चलती है. इस दौर में पार्टी अपने उन उम्मीदवारों की सूची जारी करती है, जो राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव में उतरना चाहते हैं. इसके बाद दूसरे दौर में अमेरिका के 50 राज्यों के वोटर पार्टी प्रतिनिधि (पार्टी डेलिगेट) चुनते हैं. हालांकि प्राइमरी स्तर पर पार्टी प्रतिनिधि चुनने के लिए अमेरिकी संविधान में कोई लिखित निर्देश नहीं है. इसलिए कुछ राज्यों में कॉकस के जरिये भी पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव किया जाता है, जिसमें स्थानीय स्तर पर बैठक कर पार्टी प्रतिनिधि का चुनाव किया जाता है.
क्या होता है प्राइमरी और कॉकस?
कॉकस में पार्टी के सदस्य स्कूलों, घरों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर जमा होते हैं और उम्मीदवार के नाम पर चर्चा की जाती है. वहां मौजूद लोग हाथ उठाकर उम्मीदवार का चयन करते हैं. वहीं प्राइमरी में मतपत्र के जरिये मतदान होता है. हर राज्य के नियमों के हिसाब से अलग-अलग तरह से प्राइमरी होती है और कॉकस प्रक्रिया भी हर राज्य के कानून के हिसाब से अलग-अलग होती है.
फिर पार्टी डेलिगेट्स चुनते हैं राष्ट्रपति पद के लिए पार्टी का उम्मीदवार
प्राइमरी में चुने गए पार्टी प्रतिनिधि दूसरे दौर में पार्टी के सम्मेलन (कन्वेंशन) में हिस्सा लेते हैं. कन्वेनशन में ये प्रतिनिधि पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चुनाव करते हैं. इसी दौर में नामांकन की प्रक्रिया होती है. इसके साथ ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपनी पार्टी की ओर से उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनता है.
तीसरे दौर में शुरू होता है चुनाव प्रचार
तीसरे दौर की शुरुआत चुनाव प्रचार से होती है. इसमें अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार मतदाताओं का समर्थन जुटाने की कोशिश करते हैं. इसी दौरान उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर इस मामले से जुड़े मुद्दों पर बहस भी होती है.
स्विंग स्टेट्स पर उम्मीदवारों का पूरा जोर
आखिरी हफ्ते में, उम्मीदवार अपनी पूरी ताकत 'स्विंग स्टेट्स' को लुभाने में झोंकते हैं. 'स्विंग स्टेट्स' वे राज्य होते हैं, जहां के मतदाता किसी भी पक्ष की ओर जा सकते हैं. इस वजह से दोनों ही दलों के उम्मीदवार इन राज्यों में जमकर प्रचार करते हैं, ताकि यहां के मतदाताओं को अपने पक्ष में कर सकें.
वोटर चुनते हैं इलेक्टर, जो करते हैं राष्ट्रपति का चुनाव
चुनाव की अंतिम प्रक्रिया में 'इलेक्टोरल कॉलेज' राष्ट्रपति पद के लिए मतदान करता है. हालांकि इससे पहले राज्यों के मतदाता इलेक्टर चुनते हैं, जो राष्ट्रपति पद के किसी न किसी उम्मीदवार का घोषित समर्थक होता है. ये इलेक्टर एक 'इलेक्टोरल कॉलेज' बनाते हैं, जिसमें कुल 538 सदस्य होते हैं. 'इलेक्टर' चुनने के साथ ही आम जनता के लिए चुनाव खत्म हो जाता है. अंत में 'इलेक्टोरल कॉलेज' के सदस्य वोटिंग के जरिये अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं. राष्ट्रपति बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल वोट जरूरी होते हैं.बहुमत की झोली में चले जाते हैं सारे इलेक्टोरल वोट्स
अमेरिकी राज्य नेब्रास्का और माइने को छोड़ अन्य सभी 48 राज्यों में 'विजेता सब ले जाएगा' वाला नियम लागू है, इसमें जिस उम्मीदवार के ज्यादा इलेक्टर्स जीतते हैं, उसी की झोली में सारे इलेक्टोरल वोट चले जाते हैं. इन दो राज्यों नेब्रास्का और माइने में 'कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट मेथड' इस्तेमाल होता है, जहां प्रत्येक कांग्रेसनल डिस्ट्रिक्ट के अंदर एक इलेक्टर पापुलर वोट के जरिये, जबकि बाकी के दो इलेक्टर्स पूरे राज्य के पापुलर वोट के जरिये चुने जाते हैं.
हर राज्य में अलग होता इलेक्टर का कोटा
हर राज्य का इलेक्टर चुनने का कोटा तय होता है, जहां कैलीफॉर्निया में 55, टेक्सास में 38, न्यूयॉर्क- फ्लोरिडा में 29 और पेनसिल्वेनिया में 20 इलेक्टर्स होते हैं, वहीं अलास्का, मोंटाना, नार्थ एवं साउथ डकोटा, वर्मोन्ट और वायोमिंग में तीन-तीन इलेक्टर्स होते हैं. यह संख्या हर राज्य से अमेरिकी संसद के दोनों सदनों-हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (प्रतिनिधि सभा) और सिनेट के सदस्यों की कुल संख्या के बराबर होती है. हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में 435 सदस्य होते हैं, जबकि सीनेट में 100 सदस्य बैठते हैं. इन दोनों सदनों को मिलाकर संख्या होती है 535. इसके अलावा अमेरिका के 51वें राज्य कोलंबिया से तीन सदस्य आते हैं. यानी इसको मिलाकर 538 इलेक्टर्स अमेरिकी राष्ट्रपति को चुनते हैं.
राष्ट्रपति चुनाव के लिए तय रहती है तारीख
अमेरिका में चुनाव के लिए दिन और महीना बिलकुल तय होता है. यहां चुनावी साल के नवंबर महीने में पड़ने वाले पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार को राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटिंग होती है, जो कि इस बार 8 नवंबर को है. वहीं नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण की तारीख भी तय रहती है, जो कि हमेशा 20 जनवरी को होती है.
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