सिंहस्थ में जैसी व्यवस्थाएं हैं वैसी पहले कहीं नहीं हुई- पवन गिरी
उज्जैन| आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद एक युवक साधु बन गया और उसका नाम हो गया श्री पवन भारती। उन्होंने 1983 में आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। डिग्री लेकर घर पहुंचे तो पता चला पिताजी का देवलोकगमन हो गया है। माता तो पहले ही गुजर चुकी थी। जीवन में घटित अप्रत्याशित घटना को फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले आईआईटीईएन श्री पवन भारती जी अपने शब्दों में उनके जीवन की “ब्लेकहोल” घटना बताते हैं। पिता की मृत्यु के बाद उत्तर काशी निवासी श्री पवन भारती का दीन दुनिया में मन नहीं रमा तो वे मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद भी मन की शांति के लिए काशी आ गए। काशी में गंगाघाट पर अकेले बैठे थे। ऐसे में एक महात्मा आए और बोले यहां क्यों बैठे हो, बाबा बनना है क्या? और उन्होंने भी सोचा यह भी करके देख लेते हैं। पवन गिरी ने महात्मा से कहा हां बाबा बनना है और इस तरह आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियर श्री पवन गिरी नागा साधु बन गए।फरीदकोट जिला पंजाब के आश्रम से उज्जैन सिंहस्थ में आए श्री पवन भारती जी अपने गुरुभाई श्री महंत नारायण गिरी जी के साथ आवाहन अखाड़ा के शिविर में अपना पड़ाव डाले हुए हैं। एक चर्चा में श्री पवन गिरी ने परीक्षाओं में तनाव के दौर से गुजरने वाले विद्यार्थियों से कहा कि वे अपनी इच्छा शक्ति (विलपॉवर) को बढ़ाएं, मजबूत करें। समय व परिस्थतियों से जुझने का प्रयास करें। हिम्मत नहीं हारें। हौंसले और जज्बे के साथ दृढ़ संकल्पित होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करें, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी। साधु बनने के बाद पवन गिरीजी शांति का अनुभव करते हैं। उन्हें अंदरूनी अपनापन महसूस होता है। उन्होंने कहा कि सिहंस्थ में जो व्यवस्थाएं, सुविधाएं शासन ने उज्जैन में उपलब्ध कराई है ऐसी व्यवस्थाएं पहले कभी नहीं हुई। श्री पवन गिरी जी ने कहा कि वे माइक्रोफाइनेंसिंग में रूचि रखते हैं। सेल्फ हेल्प ग्रुप के संबंध में कार्य कर रहे हैं। लोगों को छोटे-छोटे समूह बनाकर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस दिशा में अभी काफी कुछ किया जा सकता है।श्री पवन गिरीजी का कहना है कि सिंहस्थ समाज को धर्म से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। दुनिया को यह संदेश जाएगा कि सनातन धर्म, भारतीय परंपराएं, सभ्यता व संस्कृति, काफी समृद्धशाली है। उन्होंने कहा कि सन्यासी बनने के बाद पाठपूजा, जनता से मिलना, समाज के अच्छे कार्यों को जनहित में फैलाना, उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। उनका मानना है कि हमने समाज में जन्म लिया है तो समाज के प्रति हमारा भी कुछ कर्तव्य है। समाज से सिर्फ लेना ही लेना नहीं, समाज को कुछ देना भी चाहिए ताकि संतुलन बना रहे। वे कहते हैं कि जीवन में जितने अनुभव होते जाएंगे, काम आएंगे।
No comments:
Post a Comment