नई दिल्ली।। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की दरभा घाटी में कांग्रेस नेताओं पर हुए नक्सली हमले में कांग्रेस के नेता ही फंसते दिख रहे हैं। कांग्रेस के तीन प्रमुख नेताओं नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार समेत 30 लोग इस हमले में मारे गए थे। इस मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की शुरुआती रिपोर्ट आ गई है। इसमें कहा गया है कि कांग्रेस के चार नेता हमले वाले दिन 25 मई को दिनभर नक्सलियों के संपर्क में थे और उन्हें पल-पल की जानकारी दे रहे थे। एनआईए को नेताओं के कॉल डीटेल से यह जानकारी मिली है। जांच एजेंसी ने जगदलपुर के सेलफोन टॉवर्स से उस दिन के रूट की सारी कॉल डीटेल्स निकाल ली है। एनआईए का कहना है कि काफिले में शामिल भेदियों ने नक्सलियों को केवल रूट की जानकारी समय-समय पर दी, बल्कि यह भी बताया कि किस गाड़ी में कौन बैठा है। जिन नंबरों पर कांग्रेस के नेता बात कर रहे थे, वे नंबर अब बंद हैं। एनआईए की छानबीन में पता चला है कि सारे नंबर फर्जी पतों और फर्जी आईडी के जरिए लिए गए थे। हमले के बाद से ही कहा जा रहा था कि इसमें किसी घर के भेदी का ही हाथ है। छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से कहा भी गया था कि कांग्रेस नेताओं की रैली का रूट बदल गया था। कहां गया था कि किसी नेता ने यह रूट बदलवाया था। हालांकि, कांग्रेस ने इसका खंडन करते हुए कहा था कि राज्य सरकार अपनी नाकामी छिपाने क लिए गलत बातों को प्रचारित कर रही है।नक्सली हमले में मारे गए महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा भी नक्सली हमले को बड़ी राजनीतिक साजिश करार दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि पूरी घटना को साजिश के तहत ही अंजाम दिया गया है और नक्सलियों को पूरे काफिले की सटीक जानकारी देने वाला कोई न कोई भेदिया कांग्रेस नेताओं के बीच मौजूद था। दीपक का कहना है कि कर्मा को दरभा वाले रूट से वापस नहीं लौटना था। वह जिस रास्ते से जाते, वहां से लौटकर कभी नहीं आते थे। उन्हें तयशुदा रूट से आने के लिए किसने विवश किया, इसकी जांच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिताजी के आने-जाने का कार्यक्रम, उनकी गाड़ी और सुरक्षा कर्मियों की संख्या का किसी को पता नहीं रहता था। यह सब कैसे लीक हुआ, बड़ा सवाल है?एनआईए के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, प्राथमिक जांच में पता चला है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले में शामिल कोई 'शख्स' नक्सलियों के संपर्क में था। सटीक सूचना के कारण ही नक्सली दिनदहाड़े इतना बड़ा हमला करने में कामयाब रहे। सूत्रों का कहना है कि इस बात के पुख्ता सबूत मिले हैं कि हमले में घर के ही भेदी ने अहम भूमिका निभाई है। जांच एजेंसी की टीम ने हमले के दिन के पूरे कॉल डीटेल खंगाले हैं। इन्हीं के आधार पर इस बात का दावा किया जा रहा है।सूत्रों के मुताबिक, इस हमले में नक्सलियों द्वारा छोड़े गए कोंटा के विधायक कबासी लखमा सहित चार कांग्रेसी नेता संदेह के दायरे में हैं। इनमें एक नेता ने काफिले को बीच में ही छोड़ दिया था। एक को पांव में गोली लगी है और एक ने हमले के दौरान छिपकर अपनी जान बचा ली। सूत्रों का कहना है कि हमले में विधायक कबासी लखमा एक 'महत्वपूर्ण कड़ी' हैं। उनसे भी पूछताछ की जाएगी। एनआईए अफसरों का मानना है कि कबासी लखमा की सुरक्षा मजबूत की जानी चाहिए। संदेह है कि जांच को प्रभावित करने के लिए उनकी भी हत्या की जा सकती है।
प्राथमिक जांच में एनआईए को सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियों के बारे में भी पता लगा है। एनआईए के ऑफिसर इस तर्क से सहमत नहीं हैं कि राज्य खुफिया ब्यूरो ने 25 को ही अलर्ट जारी किया था। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, स्थानीय पुलिस के स्तर पर भयंकर लापरवाही बरती गई है। स्थानीय प्रशासन ने न तो अलर्ट को गंभीरता से लिया और न ही नेताओं को आगाह किया। इस मामले में इंटेलिजेंस ब्यूरो और एनटीआरओ पर भी उंगलियां उठ रही हैं। अगर राज्य सरकार के खुफिया तंत्र ने सही कदम नहीं उठाए तो राज्य में मौजूद इंटेलिजेंस ब्यूरो के अफसर तो नेताओं को आगाह कर सकते थे। सूत्रों के मुताबिक, इस इलाके में टोही विमानों द्वारा हवाई निगरानी कराने वाली संस्था की भूमिका पर भी सवाल उठा है।
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