बाबू के पास 5 करोड़ की संपत्ति देख भौचक हो गई टीम

अंबिकापुर/रायपुर।  करीब 30 हजार रुपए महीना वेतन पाने वाले अंबिकापुर कलेक्टोरेट के बाबू ऋषिकुमार सिंह के पास से एसीबी ने पांच करोड़ से ज्यादा की संपत्ति जब्त की। मंगलवार सुबह साढ़े पांच बजे एसीबी ने छापा मारा। ऋषि के घर से 15 लाख रुपए कैश और 78 लाख रुपए के निवेश के कागजात मिले। इसके अलावा 70 तोला सोने के जेवरात भी निकले। पत्नी, खुद और दोनों बच्चों के नाम की अचल संपत्ति का जोड़ पांच करोड़ रुपए से ऊपर चला गया। अंबिकापुर के केदारपुर इलाके में स्थित बाबू के घर में जांच रात तक जारी थी। एडिशनल एसपी मनोज खेलारी ने बताया कि सुनार की मदद से जेवरातों की जांच और तौल का काम रात तक जारी था। इनमें 100 ग्राम वजन  बिस्कुट भी मिला है। एक किलो वजन के चांदी के जेवरात और अन्य सामान भी हैं। खेलारी ने बताया कि इस बाबू के मकान, फॉर्महाउस, कांप्लेक्स और अन्य जमीनों की बाजार कीमत पांच करोड़ रुपए से ज्यादा आंकी गई है। इसमें से ज्यादातर अचल संपत्ति 2011 या उसके बाद खरीदी गई। रजिस्ट्री में इसकी दर बहुत कम बताने की कोशिश की गई। छापे में हैरान करने वाली बात ऋषि के निवेश हंैं। एसीबी के अब तक के किसी छापे में किसी अफसर के घर से भी 15 लाख रुपए नगद नहीं मिले थे, जो यहां मिले। इसके अलावा विभिन्न बैंकों में उसने 65 लाख रुपए की एफडी करवा रखी है।इसके अलावा बचत खातों में सात लाख, किसान विकास पत्र और एनएससी के रूप में चार लाख और बीमा प्रीमियम के रूप में चार लाख रुपए उसने दिए हैं। एसबीआई के लॉकर से 82 हजार पांच सौ रुपए नगद मिले। उसके एसबीआई कलेक्टोरेट ब्रांच के लाकर को बुधवार को खोला जाएगा। छापे के दौरान सबसे पहले टीम ने परिवार के सभी सदस्यों के मोबाइल जब्त कर लिए। मकान के आगे-पीछे का दरवाजा बंद कर दिया गया ताकि अंदर से कोई व्यक्ति सामान इधर-उधर न कर सके। दो मंजिला मकान में पहले निचले हिस्से में जांच पड़ताल की गई। इसके बाद टीम ऊपरी मंजिल पर पहुंची, जहां बाबू और उसके परिवार के लोग रहते हैं। यहां जांच में अधिक समय लगा।  कलेक्टर बंगले तक था दबदबा:-सहायक ग्रेड तीन ऋषि कुमार सिंह का करीब ढाई साल पूर्व तत्कालीन कलेक्टर जीएस धनंजय के कार्यकाल में खासा दबदबा था। एक दशक पहले धनंजय की जिले में पहली बार जब पदस्थापना हुई थी, तब ऋषि उन्हीं के अंडर में बाबू था।धनंजय कलेक्टर बनकर जिले में जब आए, ऋषि सिंह ने पुरानी पहचान को भुनाया। कुछ ही दिनों बाद निर्वाचन शाखा से कलेक्टर का स्टेनो बन गया। प्रशासन में उसकी अंदर तक पकड़ थी। ऐसा माना जा रहा है कि ज्यादातर संपत्ति उसने इसी दौरान बनाई। नए कलेक्टर के आने के बाद ऋषि सिंह को भू अभिलेख शाखा में भेज दिया गया। बैंक खाते में ही पड़ी रहती थी पूरी सैलरी:-एसीबी की टीम ने बैंक में बाबू के सैलरी एकाउंट के स्टेटमेंट निकलवाए थे। इसमें साफ हुआ कि महीनों तक वह अपने इस खाते से पैसे ही नहीं निकालता था।

No comments:

Post a Comment