लखनऊ (दिलीप अवस्थी)। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जब भी अकेले में बात कीजिए तो उनके मन में प्रदेश की औद्योगिक संभावनाओं की हिलोर उठती साफ दिखाई देती है, लेकिन जब भी वक्त आता है उन्हें अमलीजामा पहनाने का तो प्राथमिकताएं प्रदेश के विकास और लोक-लुभावन योजनाओं के बीच झूलती नजर आती हैं। उद्योग-कारखानों के प्रदेश में आने के लिए जैसे ही जमीन तैयार करने की जरूरत महसूस होती है, 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव का मंजर आंखों के सामने नाच जाता है। बजट भाषण प्रदेश के विकास दर की बात करते-करते अचानक किसान-मुसलमान और छात्र-नौजवान के चुनावी नारे में सिमट कर रह जाता है।
कहां हैं भविष्यदृष्टा अखिलेश?
लखनऊ (दिलीप अवस्थी)। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जब भी अकेले में बात कीजिए तो उनके मन में प्रदेश की औद्योगिक संभावनाओं की हिलोर उठती साफ दिखाई देती है, लेकिन जब भी वक्त आता है उन्हें अमलीजामा पहनाने का तो प्राथमिकताएं प्रदेश के विकास और लोक-लुभावन योजनाओं के बीच झूलती नजर आती हैं। उद्योग-कारखानों के प्रदेश में आने के लिए जैसे ही जमीन तैयार करने की जरूरत महसूस होती है, 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव का मंजर आंखों के सामने नाच जाता है। बजट भाषण प्रदेश के विकास दर की बात करते-करते अचानक किसान-मुसलमान और छात्र-नौजवान के चुनावी नारे में सिमट कर रह जाता है।
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