कहानी 2 ( दुर्गा रानी सिंह ) । कहानी 2 पहले आ चुकी फिल्म कहानी का सीक्वल नहीं है , वरन उसी परंपरा में एक और थ्रिलर है | समानता केवल इतनी है की सुजय घोष की इस फिल्म में भी नायिका का किरदार विद्या बालन ही निभा रही हैं | हिंदुस्तानी सिनेमा अब उस दौर में तो आ चुका है जब नायिका प्रधान फिल्म भी बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों को उतना ही खींचती है जितना डौले शौले वाले नायक खींचते हैं |फिल्म की ख़ूबसूरती ये है की फिल्म में थ्रिलर स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है | शुरुआत में फिल्म बड़े साधारण तरीके से आरम्भ होती है , विद्या सिन्हा ( बालन ) कोलकता के पास चन्दन नगर जैसे एक छोटे उपनगर में अपनी किशोरी बेटी के साथ रहती है और एक दफ्तर में क्लर्क है | बेटी पैरों से विकलांग है , और विद्या अपनी सारी कमाई से केवल अपनी बेटी के इलाज कराने अमरीका जाना चाहती है | एक दिन सुबह उसकी बेटी की देखभाल करने वाली नर्स अपने समय पर नहीं आती , विद्या अपनी बेटी के जोर देने पर पडोसी को बता कर आफिस चली जाती है , और आफिस पहुँच कर फोन से ये सुनिश्चित कर लेती है की घर में नर्स आ चुकी है | शाम को जब वो घर वापस आती है तब पता लगता है , कि बेटी का तो अपहरण हो चुका है | बदहवास विद्या मोबाइल फोन पर उसी वक्त आये काल को सुन कर अपनी बेटी को ढूंढने निकल पड़ती है , लेकिन कुछ ही दूरी पर उसका एक्सीडेंट हो जाता है और उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है , जहाँ डॉक्टर सब -इन्स्पेक्टर इंद्रजीत ( अर्जुन रामपाल ) को यह बताता है कि वो कुछ दिनों के लिए कोमा में चली गयी है | इंद्रजीत विद्या के चेहरे पर लगे ऑक्सीजन मास्क को हटा के उसका चेहरा देखता है तो ये जान के दंग रह जाता है कि वो विद्या सिन्हा नहीं बल्कि दुर्गा रानी सिंह है , जो उसकी पहली बीबी थी | कहानी में यहीं से रोमांच और सस्पेंस की शुरुआत है , विद्या , जो कि वास्तव में दुर्गारानी है , किस तरह अपनी बेटी को बचाने में कामयाब हो पाती है और किस तरह इंद्रजीत अपनी दूसरी बीबी और महकमे की अपेक्षाओं के बीच उसकी मदद कर पाता है उसके लिए आप फिल्म देखें तो ही ठीक होगा |फिल्म की जो ख़ूबसूरती है , वो ये है , कि थ्रिलर होने के बावजूद हमारे समाज में छोटी बच्चियों के साथ होने वाले शारीरिक शोषण के विषय को फिल्म में बखूबी उठाया गया है , और जैसा कि मैंने कहा , सामाजिक विद्रूप के इस घिनौने सच को हमारे सामने रखती ये फिल्म बड़ी ख़ूबसूरती से अपने मूल स्वरूप यानि थ्रिलर को भी कायम रखने में कामयाब है | फिल्म में अर्जुन रामपाल ने अपनी क्षमता का पूरा अभिनय किया है , जुगल हंसराज अलबत्ता जरूर खलनायकी के किरदार में पूरा उतर नहीं पाते हैं , पर इन सबकी कमी पूरी करती हैं विद्या | बिना मेकअप के साधारण चेहरे के पीछे छिपे अभिनय के नूर को आप बखूबी अनुभव करते हो | अपने प्रेमी के हाथ लगाने पर जब वो सिहरती है , तो आपको बिलाशक वो महसूस करा देती है कि बचपन के यौन शोषण के दंश का दुष्प्रभाव अभी तक उसके ह्रदय पर है | वो सिहरन जो आप विद्या के चेहरे और अपने मन दोनों में महसूस करते हो , यही अभिनय कला के निष्णात होने का लक्षण है , और यही वो ऐतमाद है जिसपे सुजय घोष ने अपनी पूंजी लगा दी है | संगीत और गीत दोनों अच्छे हैं , अजीतसिंह का महरम मुझे सबसे अच्छा लगा |फिल्म बढ़िया और देखने लायक है , पूरे परिवार सहित देखी जा सकती है | हमने तो ये फिल्म अपने बाकी के ट्रेनी साथियों के साथ मसूरी में देखी है |आनंद शर्मा
No comments:
Post a Comment