उज्जैन |सर्वमान्य सत्य है कि भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू आवेष्टित है। इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद हो सकते हैं कि ज्योतिर्लिंग का पृथ्वी पर कब आगमन हुआ, मगर इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद नहीं हो सकते कि आज के महाकालेश्वर मंदिर का नव-निर्माण 276 वर्ष पूर्व राणोजी शिंदे (सिंधिया) के दीवान बाबा रामचन्द्र शेणवी ने करवाया।महाकालेश्वर मंदिर के नव-निर्माण का श्रेय श्री रामचन्द्र शेणवी मल्हार सुखण्णकर को जाता है। वे कोंकण क्षेत्र के अरवली गाँव के सारस्वत गौड़ ब्राह्मण थे। रामचन्द्र शेणवी पेशवा की अश्वारोही सेना में थे। दिल्ली आक्रमण के समय बालाजी विश्वनाथ के साथ उनकी निष्ठा और सेवा के कारण पेशवा ने उन्हें वर्ष 1725 में जुन्नर की मजूमदारी और अक्टूबर वर्ष 1726 में मालवा की सरदेशमुखी दी। इसी दौरान वे राणोजी शिंदे के सम्पर्क में आये। पेशवा ने राणोजी शिंदे के माध्यम से मालवा पर आधिपत्य करने के बाद रामचन्द्र मल्हार को उज्जयिनी में ही रहने दिया। वर्ष 1739 में नवीन संरचना वाला महाकालेश्वर का वर्तमान भव्य मंदिर बाबा रामचंद्र शेणवी के प्रयासों का ही परिणाम है। महाकालेश्वर मंदिर की वर्तमान संरचना मूल मंदिर के निर्माण पर ही स्थित की गयी है।इतिहासकारों के अनुसार सल्तनत काल में उज्जयिनी पर हुए आक्रमण में महाकालेश्वर मंदिर सहित अन्य धार्मिक स्थल को क्षति हुई थी। इसके बाद लम्बे समय तक महाकालेश्वर मंदिर का कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ। मगर सन् 1720 में बाजीराव पेशवा (प्रथम) ने मालवा क्षेत्र सहित उत्तर भारत की ओर विजय के कदम बढ़ाये। सन् 1724 में मराठों ने उज्जयिनी और मालवा क्षेत्र के अधिकांश भाग पर आधिपत्य कर लिया। इन विजित प्रदेशों का विभाजन करते समय पेशवा ने उज्जयिनी का आधिपत्य राणोजी शिंदे को प्रदान किया था।उज्जैन-276 वर्ष पूर्व हुआ था महाकालेश्वर मंदिर का नव-निर्माण
उज्जैन |सर्वमान्य सत्य है कि भगवान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्वयंभू आवेष्टित है। इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद हो सकते हैं कि ज्योतिर्लिंग का पृथ्वी पर कब आगमन हुआ, मगर इस विषय पर इतिहासकारों में मतभेद नहीं हो सकते कि आज के महाकालेश्वर मंदिर का नव-निर्माण 276 वर्ष पूर्व राणोजी शिंदे (सिंधिया) के दीवान बाबा रामचन्द्र शेणवी ने करवाया।महाकालेश्वर मंदिर के नव-निर्माण का श्रेय श्री रामचन्द्र शेणवी मल्हार सुखण्णकर को जाता है। वे कोंकण क्षेत्र के अरवली गाँव के सारस्वत गौड़ ब्राह्मण थे। रामचन्द्र शेणवी पेशवा की अश्वारोही सेना में थे। दिल्ली आक्रमण के समय बालाजी विश्वनाथ के साथ उनकी निष्ठा और सेवा के कारण पेशवा ने उन्हें वर्ष 1725 में जुन्नर की मजूमदारी और अक्टूबर वर्ष 1726 में मालवा की सरदेशमुखी दी। इसी दौरान वे राणोजी शिंदे के सम्पर्क में आये। पेशवा ने राणोजी शिंदे के माध्यम से मालवा पर आधिपत्य करने के बाद रामचन्द्र मल्हार को उज्जयिनी में ही रहने दिया। वर्ष 1739 में नवीन संरचना वाला महाकालेश्वर का वर्तमान भव्य मंदिर बाबा रामचंद्र शेणवी के प्रयासों का ही परिणाम है। महाकालेश्वर मंदिर की वर्तमान संरचना मूल मंदिर के निर्माण पर ही स्थित की गयी है।इतिहासकारों के अनुसार सल्तनत काल में उज्जयिनी पर हुए आक्रमण में महाकालेश्वर मंदिर सहित अन्य धार्मिक स्थल को क्षति हुई थी। इसके बाद लम्बे समय तक महाकालेश्वर मंदिर का कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ। मगर सन् 1720 में बाजीराव पेशवा (प्रथम) ने मालवा क्षेत्र सहित उत्तर भारत की ओर विजय के कदम बढ़ाये। सन् 1724 में मराठों ने उज्जयिनी और मालवा क्षेत्र के अधिकांश भाग पर आधिपत्य कर लिया। इन विजित प्रदेशों का विभाजन करते समय पेशवा ने उज्जयिनी का आधिपत्य राणोजी शिंदे को प्रदान किया था।
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Ujjain, Madhya Pradesh, India
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